आप कल्पना कर सकते हैं कि एक सेकेंड में तीन घंटे की मूवी डाउनलोड हो
जाए! तो जनाब चौंकिए नहीं, जल्द यह सच होने वाला है. यह काम वाई-फाई नहीं
बल्कि एक नई तकनीकी लाई-फाई से संभव होगा. एक ऐसी तकनीकी जो स्पीड के मामले
में वाई-फाई से भी सौ गुना ज्यादा तेज होगी. इस लाई-फाई तकनीक का हाल ही
में परीक्षण किया गया है और माना जा रहा है कि आने वाले वक्त में यह
इंटरनेट की दुनिया का नक्शा बदलकर रख देगा. आइए जानें क्या है लाई-फाई और
यह कैसे काम करता है.
क्या है लाई-फाई
लाई-फाई एक ऐसी वायरलेस ब्रॉडबैंड टेक्नोलॉजी है जो डेटा भेजने के लिए एलईडी का इस्तेमाल करती है और आज के वाई-फाई की तुलना में सौ गुना तेज स्पीड से काम करती है. इस तकनीक में डेटा विजिबल लाइट कम्युनिकेशन (वीएलसी) द्वारा ट्रांसफर होता है. नेटवर्क्स के बीच डेटा एलईडी लाइट्स से भेजा जाता है.
यह डेटा ट्रांसफर करने की एक नई तकनीक है और इसके लिए एक विद्युत के स्रोत, जैसे कि एक स्टैंडर्ड एलईडी बल्ब, एक इंटरनेट कनेक्शन और एक फोटो डिटेक्टर की जरूरत होती है. डेटा भेजने के लिए लाइट का प्रयोग कोई नया नहीं है. 1880 में अलेक्जेंडर ग्राहम बेल (टेलीफोन के आविष्कारक) ने ऑडियो ट्रांसमिशन के लिए विजिबल लाइट का प्रयोग किया था. इस हफ्ते इसका एस्तोनिया के टालिन शहर में वेलमेनी नामक स्टार्ट-अप द्वारा परीक्षण किया गया. इस परीक्षण में लाई-फाई युक्त विद्युत बल्ब से 1 Gbps स्पीड से डेटा का ट्रांसफर किया गया. सैद्धांतिक तौर पर इसकी स्पीड 224 Gbps तक हो सकती है. इस तकनीक का परीक्षण एक ऑफिस में किया गया ताकि कर्मचारियों को इंटरनेट का ऐक्सेस मिल सके और साथ ही एक औद्योगिक क्षेत्र में भी किया गया, जहां इसने स्मार्ट लाइटिंग सॉल्यूशन उपलब्ध करवाया.
खास बात ये है कि इस स्टार्ट-अप की स्थापना एक भारतीय दीपक सोलंकी ने की है. सोलंकी ने बताया कि उनकी कंपनी वेलमेनी भले ही एस्तोनिया में रजिस्टर्ड है लेकिन उनकी पूरी टीम भारतीय है. दीपक का कहना है कि तीन से चार साल के अंदर यह तकनीक आम उपभोक्ताओं के लिए उपलब्ध हो जाएगी.
लाई-फाई तकनीक की खोज एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हेरल्ड हास ने की थी, जिन्होंने 2011 में Ted (टेक्नोलॉजी, एंटरटेंमेंट और डिजाइन) कॉन्फ्रेंस में पहली बार इस टेक्नोलॉजी का प्रदर्शन किया था. उनके लाई-फाई से जुड़ी बातों के वीडियो को अब तक 20 लाख से ज्यादा बार देखा चुका हैं. इसमें प्रोफेसर हास ने उस भविष्य के बारे में बताया है जहां अरबों लाइट बल्ब वायरसेल हॉटस्पॉट बन सकते हैं.
लाई-फाई तकनीक का एक बड़ा फायदा यह है कि यह वाई-फाई की तरह दूसरे रेडियो सिग्नल के लिए अवरोध नहीं बनता है. इसलिए इसका इस्तेमाल हवाई जहाज जैसी उन जगहों पर किया जा सकता है जहां रेडियो सिग्नल में अवरोध की समस्या आती है. साथ ही वाई-फाई के लिए काम आने वाले रेडियो तरंगों की स्पेक्ट्रम की उपलब्धता कम है जबकि लाई-फाई के लिए इस्तेमाल होने वाले विजिबल लाइट स्पेक्ट्रम की उपलब्धता 10 हजार गुना ज्यादा है, जिसका मतलब है कि इसके निकट भविष्य में खत्म होने की संभावना काफी कम है.
लेकिन इस टेकनोलॉजी की कुछ कमियां भी हैं, जैसे इसे घर के बाहर धूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है क्योंकि सूर्य की किरणें इसके सिग्नल में बाधा उत्पन्न करती हैं. साथ ही इस टेक्नोलॉजी को दीवार के आर-पार प्रयोग किया जा सकता है इसलिए शुरुआत में इसे वाई-फाई के पूरक के तौर पर सीमित तौर पर इस्तेमाल किया जा सकेगा. खासकर अस्पतालों या संकरे शहरी इलाकों, जहां वाई-फाई का प्रयोग सुरक्षित नहीं है, वहां भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है.
क्या है लाई-फाई
लाई-फाई एक ऐसी वायरलेस ब्रॉडबैंड टेक्नोलॉजी है जो डेटा भेजने के लिए एलईडी का इस्तेमाल करती है और आज के वाई-फाई की तुलना में सौ गुना तेज स्पीड से काम करती है. इस तकनीक में डेटा विजिबल लाइट कम्युनिकेशन (वीएलसी) द्वारा ट्रांसफर होता है. नेटवर्क्स के बीच डेटा एलईडी लाइट्स से भेजा जाता है.
यह डेटा ट्रांसफर करने की एक नई तकनीक है और इसके लिए एक विद्युत के स्रोत, जैसे कि एक स्टैंडर्ड एलईडी बल्ब, एक इंटरनेट कनेक्शन और एक फोटो डिटेक्टर की जरूरत होती है. डेटा भेजने के लिए लाइट का प्रयोग कोई नया नहीं है. 1880 में अलेक्जेंडर ग्राहम बेल (टेलीफोन के आविष्कारक) ने ऑडियो ट्रांसमिशन के लिए विजिबल लाइट का प्रयोग किया था. इस हफ्ते इसका एस्तोनिया के टालिन शहर में वेलमेनी नामक स्टार्ट-अप द्वारा परीक्षण किया गया. इस परीक्षण में लाई-फाई युक्त विद्युत बल्ब से 1 Gbps स्पीड से डेटा का ट्रांसफर किया गया. सैद्धांतिक तौर पर इसकी स्पीड 224 Gbps तक हो सकती है. इस तकनीक का परीक्षण एक ऑफिस में किया गया ताकि कर्मचारियों को इंटरनेट का ऐक्सेस मिल सके और साथ ही एक औद्योगिक क्षेत्र में भी किया गया, जहां इसने स्मार्ट लाइटिंग सॉल्यूशन उपलब्ध करवाया.
खास बात ये है कि इस स्टार्ट-अप की स्थापना एक भारतीय दीपक सोलंकी ने की है. सोलंकी ने बताया कि उनकी कंपनी वेलमेनी भले ही एस्तोनिया में रजिस्टर्ड है लेकिन उनकी पूरी टीम भारतीय है. दीपक का कहना है कि तीन से चार साल के अंदर यह तकनीक आम उपभोक्ताओं के लिए उपलब्ध हो जाएगी.
लाई-फाई तकनीक की खोज एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हेरल्ड हास ने की थी, जिन्होंने 2011 में Ted (टेक्नोलॉजी, एंटरटेंमेंट और डिजाइन) कॉन्फ्रेंस में पहली बार इस टेक्नोलॉजी का प्रदर्शन किया था. उनके लाई-फाई से जुड़ी बातों के वीडियो को अब तक 20 लाख से ज्यादा बार देखा चुका हैं. इसमें प्रोफेसर हास ने उस भविष्य के बारे में बताया है जहां अरबों लाइट बल्ब वायरसेल हॉटस्पॉट बन सकते हैं.
लाई-फाई तकनीक का एक बड़ा फायदा यह है कि यह वाई-फाई की तरह दूसरे रेडियो सिग्नल के लिए अवरोध नहीं बनता है. इसलिए इसका इस्तेमाल हवाई जहाज जैसी उन जगहों पर किया जा सकता है जहां रेडियो सिग्नल में अवरोध की समस्या आती है. साथ ही वाई-फाई के लिए काम आने वाले रेडियो तरंगों की स्पेक्ट्रम की उपलब्धता कम है जबकि लाई-फाई के लिए इस्तेमाल होने वाले विजिबल लाइट स्पेक्ट्रम की उपलब्धता 10 हजार गुना ज्यादा है, जिसका मतलब है कि इसके निकट भविष्य में खत्म होने की संभावना काफी कम है.
लेकिन इस टेकनोलॉजी की कुछ कमियां भी हैं, जैसे इसे घर के बाहर धूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है क्योंकि सूर्य की किरणें इसके सिग्नल में बाधा उत्पन्न करती हैं. साथ ही इस टेक्नोलॉजी को दीवार के आर-पार प्रयोग किया जा सकता है इसलिए शुरुआत में इसे वाई-फाई के पूरक के तौर पर सीमित तौर पर इस्तेमाल किया जा सकेगा. खासकर अस्पतालों या संकरे शहरी इलाकों, जहां वाई-फाई का प्रयोग सुरक्षित नहीं है, वहां भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है.
0 comments :
Post a Comment